Edible Oil Price: आयातित सस्ते माल की भरमार से खाने के तेल की कीमतों में भारी गिरावट, जानें कितने कम हो गए दाम
Edible Oil Price: देश में पैदा होने वाले किसी अन्य तिलहन फसलों के मुकाबले सबसे अधिक यानी 40% तेल की प्राप्ति सरसों से ही होती है. लेकिन आयातित सोयाबीन और सूरजमुखी तेल की भरमार की वजह से सरसों खप नहीं रहा और लगभग 50% मिलों ने काम करना बंद कर दिया है.
MSP से कम भाव पर सरसों बेचने को मजबूर किसान. (Image- Freepik)
MSP से कम भाव पर सरसों बेचने को मजबूर किसान. (Image- Freepik)
Edible Oil Price: देश में आयातित सस्ते खाद्य तेलों की भरमार के कारण सोमवार को स्थानीय मंडियों में तेल-तिलहनों में गिरावट का रुख रहा और सोयाबीन तेल-तिलहन, पामोलीन और बिनौला तेल कीमतों में गिरावट देखने को मिली. दूसरी ओर भाव ऊंचा बोले जाने मगर लिवाल नहीं होने की स्थिति के कारण सरसों और मूंगफली तेल-तिलहन के भाव पहले के स्तर पर बंद हुए.
MSP से कम भाव पर सरसों बेचने को मजबूर किसान
बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि दिल्ली की नजफगढ़ मंडी में किसानों ने तीन दिन से सरसों रखा था, लेकिन यह बिका नहीं था, क्योंकि दाम कम बोले जा रहे थे. इन फसलों के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से काफी कम लगाये जाने से दुखी होकर वे अपनी फसल बेच नहीं रहे थे. उनकी फसल खुले में पड़ी हुई थी. दाम में कोई सुधार नहीं होता देख किसान वापस अपनी ट्रॉलियों में सरसों की लदान करने लगे तब आढ़तियों ने दाम में मामूली लगभग 100 रुपये की बढ़ोतरी करते हुए इस आवक को लगभग 4,800 रुपये क्विंटल के भाव खरीदा. बता दें कि कि सरसों का न्यूनमत समर्थन मूल्य 5,450 रुपये क्विंटल है.
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खाद्य तेल पर ड्यूटी बढ़ाने की सरकार से अपील
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सूत्रों ने कहा कि केंद्रीय तेल उद्योग व्यापार संघ के अध्यक्ष सुरेश नागपाल ने कहा है कि वह 13 मार्च से सरकार से अनुरोध कर रहे हैं कि आयातित खाद्य तेलों पर शुल्क बढ़ाये नहीं गए, तो परेशानी बढ़ सकती है और इसकी वजह से किसान हतोत्साहित होकर दूसरी फसलों की ओर रुख कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि देश में पैदा होने वाले किसी अन्य तिलहन फसलों के मुकाबले सबसे अधिक यानी 40% तेल की प्राप्ति सरसों से ही होती है. लेकिन आयातित सोयाबीन और सूरजमुखी तेल की भरमार की वजह से सरसों खप नहीं रहा और लगभग 50% मिलों ने काम करना बंद कर दिया है.
सूत्रों ने कहा कि इस बात पर सरकार को गौर करना होगा कि सूरजमुखी और सोयाबीन तेल पर 5.5% का आयात शुल्क है जबकि पामोलीन पर 13.75% का आयात शुल्क लगाया जाता है. पामोलीन के महंगा होने के कारण इसके आयात का ऑर्डर रद्द कर आयातक नरम तेलों का आयात करने में जुट गये हैं. इस स्थिति को देखते हुए अनुमान है कि इस महीने सीपीओ और पामोलीन आयात घटकर 5.5 लाख टन रह सकता है.
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अब कम आयवर्ग के उपभोक्ता क्या करें? क्योंकि थोक भाव सस्ता होने के बावजूद प्रीमियम लगाये जाने और मैक्सिमम रिटेल प्राइस (MRP) के कारण सूरजमुखी और सोयाबीन उन्हें सस्ते में नहीं मिल रहा और पामोलीन 13.75% का आयात शुल्क के कारण महंगा हो चला है. मौजूदा विसंगति को दूर करने के लिए या तो सरकार को सोयाबीन और सूरजमुखी तेल पर आयात शुल्क बढ़ाना चाहिये या पामोलीन पर आयात शुल्क कम करना चाहिये ताकि संतुलन की स्थिति बने.
सूत्रों ने कहा कि कांडला बंदरगाह पर आयातित सूरजमुखी और सोयाबीन रिफाइंड तेल 85 रुपये लीटर पड़ता है जबकि आयातित पामोलीन का भाव 90 रुपये लीटर बैठता है. इस कारण सॉफ्ट आयल का आयात बढ़ रहा है.
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मिलों के बंद होने का खतरा
उधर, ब्राजील में इस बार सोयाबीन की रिकॉर्ड फसल है. देश के खपने के रास्ते में रैपसीड और सूरजमुखी तेल का भी दबाव रोड़ा बन रहा है. पहली बार रैपसीड, सोयाबीन और सूरजमुखी के दाम पामोलीन से नीचे चल रहे हैं. इस स्थिति को तत्काल संभालने की ओर ध्यान देना होगा नहीं तो देश में बची-खुची और नुकसान में भी चलने वाली मिलें बंद होने का खतरा है. सूत्रों ने कहा कि यह असंभव सी बात लगती है कि जो देश अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए 60% आयात पर निर्भर हो वहां तेल मिलें नुकसान में चले या वहां काम ठप रहे.
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09:13 PM IST